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कहां रह गए इस मझदार में बड़े ईमानदार से बनते थे , हमें तुम समझदार से लगते थे तुम भी वही थे जिसके हिस्से के हम जबरदस्ती से साझदार बने फिरते थे ।
तुम कहती हो समझने में बहुत वक्त लेता हूं मै ए मेरी महजबीं ,  ये सच्ची मोहब्बत है वक्त लेगा  ही मेरा सफर सिर्फ जिस्म तक नहीं तेरे  दिल तक है सफर लंबा है वक्त लेगा ही ।